Wednesday 11 June 2014

मनुष्य और प्रकृति


नर से नारायण हो
या फ़िर
नारायण से नर 
है दिवास्वप्न ये क्या

सामर्थ बेशक होगा तुझमें
पत्थर को पिघलाने का

पानी से बिजली लाने का प्रतिदिन
उन्नति को छूकर जीवन में बढते जाने का नित नवीन प्रयोगों से मानव जीवन सफल बनाने का किंतु
स्मरण रखना तू इस प्रकृति का जिसने खुद के आंचल में जीवन कई जन्में हैं है बल तुझमें माना किंतु भूल नहीं जाना अखिल ब्रह्मांड है यह तू
वायु का वेग नहीं बढा सकता नव शाखा तो उगा सकता है किंतु बीज नहीं बना सकता जीवन निरोग बना सकता है किंतु नव जीवन नहीं दे सकता
चाह कामयाबी की गलत नहीं तेरी किंतु मंजिल को पाने में राह पर भी तो गौर कर अपने इस व्यस्त जीवन में अपनी प्रकृति से भी प्रेम कर मानव ! पंचतत्व से बना है तू ज़रा खुद पे भी तो गौर कर अपनी प्रकृति से भी प्रेम कर ||
प्रस्तुतकर्ता: भावना जोशी
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